Published: 1st Feb 2025
सोचिए, आपकी सैलरी बढ़ जाए या फिर महंगाई कम हो जाए. बजट सरकार का सालाना प्लान होता है, जो आपकी इनकम, ख़र्च और भविष्य की योजनाओं पर असर डाल सकता है. आइए, इसे आसान भाषा में समझें.
ये सरकार का 'ख़र्चा और कमाई' का प्लान है. इसमें तय किया जाता है कि सरकार स्कूल, अस्पताल, सड़क और बाक़ी ज़रूरी चीज़ों पर कितना ख़र्च करेगी और टैक्स से कितना पैसा कमाएगी. बजट सिर्फ़ सरकारी पेपरवर्क़ नहीं, बल्कि देश की आर्थिक दिशा तय करता है.
1. रेवेन्यू बजट: रोज़मर्रा के ख़र्चे—जैसे सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और सब्सिडी. 2. कैपिटल बजट: बड़े प्रोजेक्ट्स—जैसे हाईवे, रेलवे और एयरपोर्ट का निर्माण.
अगर टैक्स कम हुए, तो आपकी सैलरी बचेगी. पेट्रोल सस्ता हुआ, तो ट्रैवल सस्ता होगा. अगर एजुकेशन या स्टार्टअप के लिए नई योजनाएं आईं, तो स्टूडेंट्स और बिज़नेस वालों को फ़ायदा मिलेगा.
सरकार को पैसे तीन ख़ास तरीक़ों से मिलते हैं: – टैक्स (GST, इनकम टैक्स) – नॉन-टैक्स इनकम (सरकारी कंपनियों का मुनाफ़ा) – कर्ज़ (यानि सरकार को भी उधार लेना पड़ता है!)
– भारत का पहला बजट 1860 में जेम्स विल्सन ने पेश किया था. – 2000 तक बजट शाम 5 बजे पेश होता था ताकि ब्रिटिश अफसर इसे आराम से पढ़ सकें. – 1991 का बजट भारत की अर्थव्यवस्था के लिए 'गेम चेंजर' साबित हुआ था.
पहले बजट की मोटी-मोटी फ़ाइलें हाथ से लिखी जाती थीं, लेकिन अब डिजिटल प्रेजे़ेंटेशन और लाइव स्ट्रीमिंग का ज़माना है! (मतलब, अब भारी-भरकम कागज़ नहीं—सारा डेटा मोबाइल पर)
बजट सिर्फ़ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि ये तय करता है कि देश की इकॉनमी कैसी चलेगी. टैक्स, नौकरियां, फ़ूड प्राइस, ट्रांसपोर्ट—सब पर असर पड़ता है. तो अगली बार बजट डे पर सिर्फ़ न्यूज़ स्क्रॉल न करें, इसे समझें और देखें कि इससे आपको क्या फ़ायदा या नुक़सान हो सकता है.
इस पोस्ट का उद्देश्य निवेश की जानकारियां देना है. ये निवेश की सलाह नहीं है.