Published: 02nd Dec 2024
फ़ंड के लिए सही प्लान का चुनाव लॉन्ग-टर्म रिटर्न पर काफ़ी असर डालता है.
पोर्टफ़ोलियो, फ़ंड मैनेजमेंट के लिहाज़ से दोनों प्लान में कोई अंतर नहीं है. अंतर सिर्फ़ एक्सपेंस रेशियो में है. एक्सपेंस रेशियो यानी निवेश का ख़र्च. ये रेग्युलर प्लान के ख़र्च से ज़्यादा होता है क्योंकि फ़ंड कंपनी को एजेंट/ डिस्ट्रीब्यूटर को कमीशन देना होता है.
ये एक ऐसा इन्वेस्टमेंट प्लान है, जिनमें निवेशक ब्रोकर के बग़ैर सीधे म्यूचुअल फ़ंड कंपनी से यूनिट ख़रीदते हैं. ये तरीक़ा कमीशन या ब्रोकर की फ़ीस से जुड़ी लागत हटा देता है, जिससे एक्सपेंस रेशियो कम हो जाता है और निवेशक को बेहतर रिटर्न मिलता है.
डायरेक्ट प्लान में कमीशन और मार्केटिंग से जुड़ा ख़र्च कम होता है. क्योंकि ये पैसा आपके निवेश में बना रहता है, इसलिए लंबे समय में ज़्यादा रिटर्न मिलता है जो इसकी सबसे बड़ी ख़ूबी है.
वहीं, Mutual Fund के रेग्युलर प्लान का Expense Ratio आमतौर पर डायरेक्ट प्लान से 1% ज़्यादा होता है. ये आंकड़ा छोटा लगता है, लेकिन समय के साथ ये बड़ा नुक़सान पहुंचा सकता है.
इस प्लान की ख़ामी ये है कि इसमें निवेश से जुड़े फ़ैसले आपको ख़ुद ही लेने पड़ते हैं. साथ ही, निवेश से जुड़ी सभी औपचारिकताएं भी ख़ुद ही करनी पड़ती हैं.
साफ़ है कि उन्हीं निवेशकों को डायरेक्ट प्लान में निवेश करना चाहिए, जिन्हें म्यूचुअल फ़ंड्स और निवेश से जुड़ी अच्छी जानकारी हो.