Anand Kumar
शेयर मार्केट एक सख़्त टीचर हो सकता है. स्मॉल-कैप की हालिया बिकवाली इसकी सबसे बड़ी मिसाल पेश करती है, जहां BSE स्मॉलकैप इंडेक्स सिर्फ़ छह महीनों में 23 प्रतिशत से ज़्यादा गिर गया है. इंडेक्स के इतिहास की इस दूसरी सबसे बड़ी गिरावट ने कई निवेशकों को बड़ा नुक़सान पहुंचाया है और उनके निवेश के चुनाव पर सवालिया निशान लगा दिए हैं.
मगर, इतिहास ने बार-बार दिखाया है कि ऐसी निराशा अक्सर लॉन्ग-टर्म निवेशकों के लिए सबसे अच्छे ख़रीदारी के मौक़े बनाती है. इस गिरावट के बारे में जो बात ख़ासतौर से समझने वाली है, वो इसका इसका भेदभाव भरा स्वभाव है. जब बाज़ार गिरते हैं, तो वे शायद ही कभी हर किसी के लिए एक जैसे गिरते हैं, दरअसल ये गिरावटें गेहूं को भूसे से अलग करने का काम करती हैं, ख़राब क्वालिटी वाले बिज़नस गंभीर सज़ा पाते हैं जबकि क्वालिटी बिज़नस की क़ीमतें कम हो कर वहां पहुंच जाती हैं जहां वे मार्केट दबाव को झेल सकती हैं.
डेटा एक दिलचस्प कहानी बताता है. जहां औसत स्मॉल-कैप स्टॉक में 27.5 प्रतिशत की गिरावट आई, वहीं एक्टिवली मैनेज किए जाने वाले स्मॉल-कैप फ़ंड्स ने काफ़ी बेहतर किया है. लगभग सभी ने अपने बेंचमार्क को पछाड़ा है. ये केवल पेशेवर एक्सपर्ट्स होने की बात नहीं, बल्कि निवेश के एक बुनियादी सिद्धांत की जीत है: क्वालिटी वाले निवेश मंदी के दौरान पूंजी की रक्षा करता है.
स्मॉल कैप या किसी भी बिज़नस में क्वालिटी को क्या परिभाषित करता है? मज़बूत ग्रोथ जिसके पीछे ठोस रिटर्न मेट्रिक्स की ताक़त खड़ी होती है. इक्विटी पर ऊंचा रिटर्न, कम लीवरेज और लगातार रेवेन्यू ग्रोथ न कि केवल स्मॉल कैप के लिए बल्कि किसी भी कंपनी के लिए ज़रूरी है. ये फ़ैक्टर जब एक साथ होते हैं, तो मार्केट की उठा-पटक के ख़िलाफ़ एक ताक़तवर ढाल बनाते हैं.
सबसे ज़्यादा स्पष्ट दिखने वाली बात है कि जो कंपनियां तीनों मेट्रिक्स पर-बुनियादी तौर से कमज़ोर बिज़नस-ख़राब स्कोर करती हैं, उन्हें सबसे गंभीर गिरावट का सामना करना पड़ा है. ये पैटर्न नया नहीं. 2018 के स्मॉल-कैप सुधार में, हमने इसी बदलाव को देखा, जिसमें क्वालिटी वाले स्मॉल कैप कम गिरे और बाद में तेज़ी से रिकवर हुए और अगले पांच साल में उन्होंने बेहतर रिटर्न दिया.
मार्केट के काम करने के तरीक़े में एक सुंदर समरूपता या सिमिट्री है: कमज़ोर कंपनियां गिरावट के दौरान ढह जाती हैं, जबकि मज़बूत कंपनियां केवल झुकती हैं और दोबारा मज़बूती से वापस लौटती हैं. बाज़ार की गिरावटों का ये गोल-गोल चक्र में चलने का स्वभाव निवेशकों के लिए दोहरे मौक़े पैदा करता है - वे क्वालिटी बिज़नस के लिए आकर्षक एंट्री प्वाइंट बनाता है और कमज़ोर कंपनियों को सामने ला देता है.
आज के स्मॉल-कैप की अफ़रातफ़री में उम्मीद की किरण ये है कि कई बुनियादी तौर पर मज़बूत कंपनियां अब आकर्षक वैल्युएशन पर उपलब्ध हैं. जो बिज़नस पहले बहुत महंगे थे, वे अचानक पहुंच में आ गए हैं, उनके प्राइस पर डिस्काउंट है, हालांकि उनकी इंट्रिंसिक वैल्यू यानि उनका आंतरिक मूल्य काफ़ी हद तक बना हुआ है.
बाज़ार में होने वाली गिरावटों को समझने के लिए भावनात्मक अनुशासन चाहिए. जब क़ीमतें नाटकीय रूप से गिरती हैं, तो ज़्यादातर निवेशक गिरावट के रिस्क पर ही ध्यान लगाए रहते हैं और कम हुई क़ीमतों के बेहतर रिस्क-रिवॉर्ड के बैलेंस को अनदेखा कर देते हैं. मगर इतिहास गवाह है कि ऐसे समय में क्वालिटी बिज़नस में निवेश करना सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद निवेश की रणनीतियों में से एक साबित हुआ है.
आप ज़रा उन कंपनियों के बारे में सोचिए जो अपने मुख्य व्यवसाय से हट रही हैं या अपने सेगमेंट में मार्केट में अव्वल हैं; उनमें से कुछ बहुत कम P/E पर कारोबार कर रही हैं. ये वैल्यू दिखाता है या वैल्यू ट्रैप, एक खुला सवाल है. लेकिन गिरावट ने ऐसे सभी व्यसायों को क़रीब से जांचने लायक़ बना दिया है जिसे लेकर हमने अपनी कवर स्टोरी में ऐसी कंपनियों पर गहराई से विचार किया है.
हमने पहले भी ये पैटर्न देखा है. आज के कुछ सबसे सफल मिड और लार्ज-कैप स्टॉक कभी स्मॉल कैप थे जिन्हें निवेशकों ने मार्केट की गिरावट के दौरान तलाशा. मौजूदा बिकवाली उन लोगों के लिए एक जैसे मौक़े पेश करती है जो अपना होमवर्क करने और प्राइस के बदलावों के बजाय बुनियादी बातों पर ध्यान केंद्रित करने के इच्छुक हैं.
जैसा कि वॉरेन बफे़ ने मशहूर सलाह दी थी, जब दूसरे लालची हों तो डरो और जब दूसरे डरे हुए हों तो लालची बनो. आज का स्मॉल-कैप मार्केट इस समझदारी की मिसाल है. लंबे समय का निवेश करने वालों के पास डिस्काउंट पर अच्छी क्वालिटी ख़रीदने का मौक़ा है. उन लोगों के लिए इनाम बहुत बड़ा हो सकता है जिनके पास मिट्टी के ढेर से हीरे को अलग करने का धैर्य और समझदारी है.
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