Anand Kumar
ये वेल्थ इनसाइट का 19वां एनिवर्सिरी इश्यू है और ये हमें बिल्कुल सही लगा कि हम अपनी कवर स्टोरी को इक्विटी निवेश की सबसे असाधारण घटना-100-बैगर- पर केंद्रित रखें. वो छुपा-रुस्तम स्टॉक जो एक सामान्य निवेश को पीढ़ियों तक चलने वाली एसेट में बदल देता है, जिससे रिटायरमेंट प्लानिंग लगभग आसान-सी लगती है. ऐसा एक स्टॉक खोज लें, इसमें ठीक-ठाक रकम लगाएं और फिर कंपाउंडिंग का जादू बाक़ी काम कर देगा.
इसका आकर्षण साफ़ है. जैसा कि हमारी कवर स्टोरी दिखाती है, ₹1 लाख का निवेश अगर असल 100-बैगर में किया जाए, तो आपको हर महीने ₹38,500 की SIP की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, जो एक दशक में एक करोड़ जमा करने के लिए चाहिए होती. ये अनुशासित तरीक़े से वैल्थ बनाने और वैल्थ में क्रांतिकारी बदलाव के बीच का फ़र्क़ है. लेकिन बात ये है-100-बैगर बेहद दुर्लभ होते हैं. हमारे एनालिसिस से पता चलता है कि हर हजार लिस्टेड कंपनियों में से केवल 30 ही 15 साल में 100 गुना रिटर्न दे पाती हैं.
इस दुर्लभता को समझना बेहद ज़रूरी है. और, ये लॉटरी की टिकट नहीं हैं. इनमें कुछ पैटर्न होते हैं, कुछ ख़ास ख़ूबियां होती हैं और ये कुछ ख़ास परिस्थितियों से निकलकर सामने आते हैं, जिनकी स्टडी की जा सकती है और कुछ हद तक अनुमान लगाया जा सकता है. ज़्यादातर निवेशक जो ग़लती करते हैं, वो ये है कि वे 100-बैगर को किसी भी मल्टी-बैगर जैसा समझ लेते हैं. फ़र्क़ सिर्फ़ रिटर्न के स्तर में नहीं, बल्कि बिज़नस की बुनियादी प्रकृति और संरचनात्मक अनुकूल परिस्थितियों में होता है.
हमारे रिसर्च में जो बात मुझे सबसे ज़्यादा आकर्षक लगती है, वो ये है कि ये कंपनियां अक्सर शुरुआत में साधारण-सी लगती हैं. शुरुआती पांच साल की ग्रोथ रेट और रिटर्न रेशियो बहुत शानदार नहीं होते. ये ऐसे बिज़नस होते हैं जो समय के साथ खुद को बदलते हुए, अच्छे से महान बनते हैं, सामान्य से विशेषज्ञ बनते हैं और अपने चुने हुए क्षेत्र में फ़ॉलोअर से लीडर बन जाते हैं. इससे पता चलता है कि 100-बैगर की पहचान करना मौजूदा आंकड़ों के एनालिसिस से ज़्यादा बिज़नस के विकास को समझने की बात है.
समय की भी अहमियत है. हमारे डेटा से साफ़ पता चलता है कि शुरुआती वैल्यूएशन और 100-बैगर से जुड़ी घटनाओं के बीच स्पष्ट संबंध है. जब बाज़ार महंगे होते हैं, तो ये असाधारण वैल्थ क्रिएटर्स खोजना लगभग असंभव हो जाता है. हमारे एनालिसिस से सबसे अहम बात ये सामने आती है कि स्थायी कंपाउंडर और अस्थायी तेज़ी में फ़र्क़ होता है. कुछ कंपनियां शुरुआत में तेज़ी से बढ़ती हैं, लेकिन नींव कमज़ोर साबित होने पर ढह जाती हैं. दूसरी ओर, कुछ कंपनियां सालों तक धीरे-धीरे खुद का निर्माण करती हैं, फिर एक ऐसे मोड़ पर पहुंचती हैं जो उनकी यात्रा को तेज़ कर देता है. इन पैटर्न को समझना यानी असल ताकत और अस्थायी मोमेंटम के बीच फ़र्क़ पहचानना ही 100-बैगर की सफल खोज को महंगी सट्टेबाजी से अलग करता है.
इससे मुझे एनिवर्सिरी इश्यू और वैल्थ क्रिएशन की प्रकृति के बारे में एक बड़ी बात याद आती है. हर साल, जब हम इस मैगज़ीन के लिए एक नया मील का पत्थर छूते हैं, तो मुझे याद आता है कि भले ही बाज़ार विकसित हो रहे हों, लेकिन सफल निवेश के सिद्धांत उल्लेखनीय रूप से एक जैसे रहते हैं. ऐसे में, समझें कि आपके पास क्या है, वैल्यूएशन पर ध्यान दें, मंदी के दौरान सब्र रखें और कम्पाउंडिंग ग्रोथ को अपना जादू चलाने दें.
100-बैगर की खोज इन सभी विचारों का सार है. असल बदलाव और महज क़ीमतों में बढ़ोतरी के बीच फ़र्क़ करने के लिए दूरदृष्टि, धैर्य और विनम्रता चाहिए. असल में, ज़्यादातर दांव काम नहीं करेंगे. लेकिन जो कुछ काम करते हैं, वे बाक़ी सभी की भरपाई कर सकते हैं.
यही इस अंक को ख़ास बनाता है. हम न केवल संभावित 100-बैगर को सामने लाते हैं, बल्कि स्क्रीनिंग के मापदंडों के बारे में भी बताते हैं. हमारी दूसरी कवर स्टोरी दिखाती है कि हमारा स्टॉक रेटिंग सिस्टम-जो क्वालिटी, वैल्यूएशन, ग्रोथ और मोमेंटम का आकलन करता है-निवेश की पांच स्टाइल्स में कैसे लागू हो सकता है. ये शोर को छानने और आपकी खोज को बेहतर बनाने में मदद करता है.
100-बैगर की मानसिकता और हमारी स्टॉक रेटिंग की मेथडोलॉजी मिलकर वही दर्शाती है, जो वैल्यू रिसर्च हमेशा से करती आई है यानी निवेश के सिद्धांतों को अमल में लाने के लायक जानकारी में बदलना. हर 100-बैगर की शुरुआत अनजान शेयरों के साथ होती है. सबसे अहम बात यही है कि बाक़ियों से पहले उन्हें नोटिस करना यानी पहचानना सीख लें.
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