समय-समय पर हम सब इस भ्रम का शिकार हो जाते हैं कि इक्विटी निवेश का मतलब है बड़े-बड़े मैक्रो ट्रेंड्स को पहचानना और उनसे फ़ायदा उठाना. हम मानने लगते हैं कि किसी देश या दुनिया की आर्थिक दशा को समझकर, उसका पूर्वानुमान लगाकर हम शेयर बाज़ार से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं. लेकिन हक़ीक़त ये है कि ये सोच पूरी तरह से ग़लत है. ये ग़लतफ़हमी ही कई निवेशकों को उस रिटर्न दूर कर देती है, जो उन्हें मिलना चाहिए.
भारत में पिछले कुछ महीनों में ये बात बहुत स्पष्ट हो गई है, ख़ासतौर पर तब जब सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी कटौती की. महीनों तक निवेशक ये रोना रोते रहे कि इकॉनमी डूब रही है और इसके साथ ही स्टॉक मार्केट भी. अगर ऐसा भी हो, तो उस पर काम करना बहुत बड़ी ग़लती हो सकती है. बदक़िस्मती से कई लोगों ने यही किया और तब तक निवेश से बाहर हो गए जब तक कि इकॉनमी के सुधरने का इंतज़ार था.
लेकिन जैसे ही मोदी सरकार ने टैक्स कटौती की घोषणा की, कई निवेशकों को लगा कि वे एक बड़े मौक़े से चूक गए. मगर समस्या सिर्फ़ ये नहीं थी कि उन्होंने सरकार के क़दमों का अनुमान नहीं लगाया, असल समस्या ये थी कि वे मानते हैं कि इक्विटी निवेशकों को बड़े पैमाने पर चल रहे आर्थिक ट्रेंड्स पर ध्यान देना चाहिए और उसी के मुताबिक़ निवेश करना चाहिए.
असल समस्या ये है कि अच्छा निवेश करने और बेहतर रिटर्न हासिल करने के लिए अलग-अलग तरह की स्किल्स की ज़रूरत होती है. मोटे तौर पर बात करें, तो एक तरफ़ आपको यह समझना होता है कि कौन से स्टॉक्स अच्छा प्रदर्शन करेंगे, और दूसरी तरफ़ ये जानने की कोशिश करनी होती है कि मार्केट या इकॉनमी की दिशा क्या होगी. बरसों के अनुभव के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि स्टॉक्स की पहचान करना तो कई निवेशकों के बस में होता है, लेकिन व्यापक आर्थिक दिशा का लगातार अनुमान लगाना लगभग नामुमकिन है. हाल की घटनाएं – मंदी और टैक्स कट – यही साबित करती हैं.
इससे भी बड़ी बात ये है कि जो निवेशक पहली चीज़ ठीक से करते हैं (यानि अच्छे स्टॉक्स चुनते हैं), वे दूसरी चीज़ में उलझकर पैसा गंवा देते हैं. थ्योरी में तो ये ठीक लगता है कि अच्छा स्टॉक चुनो और जब लगे कि बाज़ार गिरेगा, तब बेच दो. लेकिन हक़ीक़त में ज़्यादातर निवेशक तब बेचते हैं जब मार्केट गिर चुका होता है और तब ख़रीदते हैं जब मार्केट चढ़ चुका होता है. ये रणनीति नहीं चलती.
ये स्टॉक्स की बात है
स्टॉक इन्वेस्टिंग, स्टॉक्स को चुनने की बात है – बस. अगर आपने ये सही किया, तो बाक़ी सब बेमानी है. और अगर ये ग़लत किया, तो बाक़ी सब होने का भी कोई फ़ायदा नहीं. अगर आप अच्छे स्टॉक्स चुनते हैं, उन्हें एक समझदारी भरे पोर्टफ़ोलियो में शामिल करते हैं और फिर इकॉनमी की हेडलाइंस के मोहपाश में बंधे बग़ैर अपना निवेश करते रहते हैं – तो आप पैसे बनाएंगे.
अब जहां तक ये सवाल है कि कौन से स्टॉक्स चुनने हैं – ये काम हम आपके लिए आसान करते हैं. वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन के पाठक होने के नाते आप हमारी कई फ़्री टूल्स और रिसोर्स से वाकिफ़ होंगे. लेकिन एक चीज़ जो हम साइट पर नहीं करते, वो है – तैयार निवेश की लिस्ट देना. इसके लिए है वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र, जिसके बारे में आप शायद पहले ही सुन चुके हैं.
तो क्या है वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र?
जैसा नाम है, वैसा ही इसका काम – ये आपको बताता है कि कौन से स्टॉक्स में निवेश करना चाहिए. हमारी रिसर्च टीम उन स्टॉक्स की एक लिस्ट बनाए रखती है जो निवेश लायक़ हैं. आप उनमें निवेश कीजिए और पैसा बनाइए. जब कोई स्टॉक निवेश के लायक़ नहीं रह जाता, हम आपको उसे बेचने के लिए कह देते हैं. इससे आसान क्या हो सकता है?
बेशक़, इससे कहीं ज़्यादा भी है. वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र में और भी कई फ़ीचर्स हैं, लेकिन इसे बेहद सरल तरीक़े से भी इस्तेमाल किया जा सकता है. असल में, इस सर्विस की बुनियादी सोच ही यही है – एक पारदर्शी, फ़ंडामेंटल्स पर आधारित, इस्तेमाल में आसान स्टॉक रिसर्च का ज़रिया.
हमारे पास एक और टूल है – स्टॉक स्क्रीनर, जो भारत में उपलब्ध किसी भी टूल से बिल्कुल अलग है. साथ ही, हर लिस्टिड भारतीय कंपनी के बहुत सारे फ़ाइनेंशियल्स भी आपको मिलते हैं – सिर्फ़ उन्हीं के नहीं जो हमारी रेकमेंडेशन की लिस्ट में हैं. इसके अलावा, हमारी टीम समय-समय पर सभी सिफ़ारिश किए गए स्टॉक्स पर अपडेटेड राय और निवेश या बेचने का कारण भी देती है.
ये एक प्रीमियम सर्विस है. ये आपको इस मैगज़ीन से कहीं ज़्यादा जानकारी देती है और इसके संचालन में हमारी टीम को भी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है. इसलिए, इसकी क़ीमत भी मैगज़ीन से ज़्यादा है. मैं ये दावा नहीं करूंगा कि ये सस्ती है, लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि ये ग़लत स्टॉक्स ख़रीदने से सस्ती है! और हां, फ़िलहाल ये काफ़ी छूट पर मिल रही है. ज़्यादा जानें और सब्सक्राइब करें: valueresearchstocks.com