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बेहद सस्ते मिल रहे हैं ये 8 हाई-क्वालिटी स्टॉक्स!

ये हाई-क्वालिटी कंपनियां पूंजी से संबंधित अनुशासन और कम वैल्यूएशन मल्टीपल्स के चलते अलग नज़र आती हैं

कोल इंडिया, आंध्र पेट्रोकेमिकल्स और 6 अन्य हाई क्वालिटी और कम कम P/E वाले स्टॉकAI-generated image

ऐसे बाज़ार में जहां अक्सर सिर्फ़ चर्चा और हाइप को समर्थन मिलता है, वहीं मज़बूत बिज़नस क्वालिटी और वाजिब वैल्यूएशन के मेल वाली कंपनियों की पहचान करना आज भी वैल्यू इन्वेस्टिंग की नींव है. हमारी नई अपडेटेड स्क्रीन में हमने सभी मार्केट कैप्स वाली कंपनियों को फ़िल्टर किया और उनमें से उन्हीं को चुना जिनका क्वालिटी स्कोर 9 या उससे ज़्यादा और वैल्यूएशन स्कोर 8 या उससे ज़्यादा था—यानी ऐसी कंपनियां जिनमें मज़बूत फ़ंडामेंटल और वैल्यूएशन में सहज संतुलन का बेहतरीन मिश्रण था.

इन फ़िल्टर्स के इस्तेमाल के साथ 8 स्टॉक्स सामने आए, जो वाकई ध्यान देने लायक हैं.

चलिए इस लिस्ट में से दो ख़ास नामों— कोल इंडिया और आंध्र पेट्रोकेमिकल्स पर क़रीब से नज़र डालते हैं और समझते हैं कि क्यों इन्हें इतना आकर्षक और हाई-क्वालिटी बिज़नस माना जाए.

सिक्योरिटी स्टॉक रेटिंग 5 साल का औसत ROE (%) P/E 5 साल का मीडियन P/E
Andhra Petrochemicals 5 21.5 11.4 10.2
Elpro International 5 35.4 16.5 25.8
JK Paper 5 22.0 8.7 8.0
Radiant Cash Management Services 5 28.0 15.3 4.2
Tanla Platforms 5 25.4 12.6 25.0
West Coast Paper Mills 5 26.6 7.6 6.5
Andhra Paper 4 19.2 12.4 7.6
Coal India 4 50.1 6.9 6.7

कोल इंडिया

दुनिया की सबसे बड़ी कोयला कंपनी Coal India भारत की थर्मल पावर सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है. यही कंपनी लगभग 75 से 80 फ़ीसदी घरेलू कोयले की आपूर्ति करती है, जिससे इसका एक तरह से एकाधिकार (near-monopoly) बन गया है. इसे एक ढलती इंडस्ट्री माने जाने के बावजूद, कंपनी के वित्तीय आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां करते हैं.

कोल इंडिया की बैलेंस शीट बेहद मज़बूत है, जो लगभग कर्ज़-मुक्त है और इसका पिछले पांच वर्षों का औसत ROE करीब 50 फ़ीसदी है—जो पब्लिक सेक्टर की कंपनियों में सबसे ज़्यादा है. कंपनी का फ़्री कैश फ़्लो मज़बूत बना हुआ है, जिसकी बदौलत ये लगभग 6.5 फ़ीसदी की डिविडेंड यील्ड दे रही है—जो आज के दौर में एक दुर्लभ बात है.

ऑपरेशन के मोर्चे पर, कंपनी ने हाल के वर्षों में काफ़ी सुधार किए हैं, जिनमें ज्यादा मशीनीकरण, माइन्स की डिजिटल निगरानी, ई-नीलामी प्रीमियम्स और लॉन्ग-टर्म फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट्स पर फोकस आदि शामिल हैं. इसका असर नतीजों पर साफ़ दिखता है. फ़ाइनेंशियल ईयर 15-19 के बीच एवरेज EBIT मार्जिन 11.6% था, जो FY20-24 में बढ़कर 18% हो गया है. वैल्यूएशन की बात करें तो, कंपनी का शेयर अर्निंग की तुलना में सिर्फ़ 6-7 गुने पर ट्रेड कर रहा है, जो इसे डिविडेंड स्टेबिलिटी के साथ एक बेहतर निवेश बनाता है.

हालांकि कुछ जोखिम भी हैं. सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी होने के कारण, ये नीतिगत दखल और कभी-कभी लालफीताशाही की शिकार हो सकती है, जैसा कि पहले भी देखा गया है. रिन्यूएबल एनर्जी की ओर तेज़ी से बढ़ता रुझान इसके लिए सबसे बड़ा खतरा है, जिससे कोल इंडिया की वॉल्यूम ग्रोथ आने वाले वर्षों में धीमी हो सकती है. इसके अलावा, कंपनी अब काफ़ी मैच्योर हो गई है, जहां से तेज़ ग्रोथ की संभावनाएं काफ़ी सीमित हो जाती हैं.

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आंध्र पेट्रोकेमिकल्स

स्मॉल-कैप कंपनी Andhra Petrochemicals केमिकल इंडस्ट्री के एक निचले लेकिन अहम सेगमेंट में काम करती है, जो ऑक्सो-अल्कोहल्स बनाना है. ये केमिकल्स भारत की प्लास्टिसाइज़र इंडस्ट्री में इस्तेमाल होते हैं, जिनसे लचीले PVC पाइप्स, सिंथेटिक लेदर और फ्लोरिंग बनाए जाते हैं. साथ ही, ये फ्यूल एडिटिव्स (जैसे सॉल्वेंट्स जो इंजन परफॉर्मेंस बेहतर करते हैं), पेंट्स, कोटिंग्स और एडहेसिव्स में भी काम आते हैं.

आंध्र पेट्रो की ख़ासियत है इसका कर्ज़-मुक्त होना और बेहद मजबूत करंट रेशियो (10.4 गुना) होना, जिससे इसकी लिक्विडिटी बहुत मज़बूत है. पिछले तीन सालों में कंपनी ने औसतन 24 फ़ीसदी ROE और 33 फ़ीसदी ROCE दिया है. साथ ही, इसका कैश कन्वर्ज़न साइकल सिर्फ 21 दिन की है, जिससे इसकी ऑपरेशनल एफ़िशिएंसी जाहिर होती है.

कंपनी को कुछ ढांचागत बदलावों का फ़ायदा भी हो सकता है. मिसाल के तौर पर, आंध्र प्रदेश में $11 बिलियन की लागत से BPCL का पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स बन रहा है, जहां प्रोपलीन और अन्य ऑयल डेरिवेटिव्स बनेंगे. ये वही फीडस्टॉक्स हैं जिनसे प्लास्टिसाइज़र बनाए जाते हैं. इससे क्षेत्र में नई मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स सामने आ सकती हैं, जिससे लोकल डिमांड बढ़ेगी और आंध्र पेट्रो भूगोलिक नज़दीकी व मौजूदा क्षमता के चलते इसका भरपूर फ़ायदा उठा सकती है.

वैल्यूएशन के लिहाज से कंपनी का स्टॉक सिर्फ 11.5 गुना P/E पर ट्रेड हो रहा है, जिसकी मुख्य वजह इसकी कमाई में उतार-चढ़ाव है. मिसाल के तौर पर FY24 में जहां सालाना 210% की ग्रोथ रही, वहीं FY25 की तीसरी तिमाही में कंपनी घाटे में चली गई. इस वोलैटिलिटी की मुख्य वजह कच्चे माल और तैयार माल दोनों की क़ीमतों में दिखने वाले साइक्लिकल बदलाव हैं, जो पूरी तरह से क्रूड ऑयल पर निर्भर हैं. साथ ही, कंपनी की प्रोडक्ट रेंज सीमित है और इसके पास प्राइसिंग पावर भी नहीं है, जिससे ये उतार-चढ़ाव और बढ़ जाते हैं. इसके अलावा, इसके प्रोडक्ट्स की डिमांड मुख्य रूप से कंस्ट्रक्शन और ऑटो इंडस्ट्रीज़ से जुड़ी होती है, जो खुद भी काफ़ी साइक्लिकल हैं और अक्सर मंदी का सामना करती हैं.

आखिरी बात

ये स्क्रीनर दो सबसे अहम चीज़ों पर फोकस करता है—बिजनेस क्वालिटी (जैसे मजबूत कैपिटल एफिशिएंसी, बैलेंस शीट आदि) और सहज वैल्यूएशन जो संभावित जोखिमों को पहले से कवर करता है. हालांकि, इस स्क्रीनर में शामिल स्टॉक्स को हमारी तरफ़ से निवेश की रिकमंडेशन नहीं माना जाना चाहिए. ये तो बस एक शुरुआती पड़ाव है, जिससे आप आगे की गहराई से रिसर्च कर सकते हैं. अगर आप चाहें कि कोई एक्सपर्ट आपके लिए पहले से रिसर्च कर के तैयार पोर्टफ़ोलियो तैयार करे, तो हमारी सर्विस वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र ज़रूर आज़माएं. इसमें आपको हर महीने अपडेट होने वाली, अच्छी तरह से जांची-परखी स्टॉक रेकमेंडेशंस और निवेश के लिए तैयार पोर्टफोलियो मिलेंगे.

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