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एकम्स ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स ने 2004 में हरिद्वार के बाहरी इलाके में एक किराए के शेड से अपनी शुरुआत की थी, जहां ये बड़े ब्रांड्स के लिए खांसी का सिरप बनाती थी. असल में, कंपनी अपनी खुद की फैक्ट्रियां चलाने के झंझट से बचना चाहते थी. दो दशक बाद, एकम्स अब एक बड़ी कंपनी बन चुकी है. ये भारत की सबसे बड़ी फिनिश्ड-डोज कॉन्ट्रैक्ट डेवलपर और मैन्युफैक्चरर (CDMO) है. उसके 10 कारखाने हैं, टैबलेट, कैप्सूल, सिरप सहित करीब 5,000 करोड़ फॉर्मुलेशन यूनिट्स पर काम करती है. इसके क्लाइंट्स की लिस्ट में ज़्यादातर भारतीय और कई मल्टीनेशनल ब्रांड्स शामिल हैं.
हालांकि, बाज़ार में इसका शेयर उतना चमक नहीं पाया. पिछले साल अगस्त में लिस्टिंग के बाद से इसका शेयर 40 प्रतिशत गिर चुका है. इसकी वजह? मुनाफ़े के मामले में एकम्स अभी भी कमज़ोर है. फ़ाइनेंशियल ईयर 25 में इसका EBITDA मार्जिन 11 प्रतिशत रहा, जो डिवीज़ लैबोरेट्रीज़, सिनजीन इंटरनेशनल और ग्लैंड फार्मा जैसे प्रतिस्पर्धियों के 24-35 प्रतिशत मार्जिन के सामने फीका है.
लगातार बना हुआ ये अंतर निवेशकों के लिए पहेली बना हुआ है. शेयर अभी भी फ़ाइनेंशियल ईयर 25 की कमाई के 27 गुने पर ट्रेड कर रहा है, जो सिनजीन के 55 गुना और डिवीज़ के 80 गुना से काफ़ी सस्ता है. वैल्यूएशन को लेकर बहस आखिरकार दो सवालों पर आकर रुकती है: एकम्स का मार्जिन इतना कम क्यों है और, इससे भी ज़रूरी, क्या ये इतना बढ़ सकता है कि शेयर की क़ीमत में लगातार तेज़ी आए?
मार्जिन कम क्यों हैं
एकम्स ने अपना बिज़नस साधारण फॉर्मुलेशंस-पैरासिटामॉल, विटामिन मिक्स, सामान्य एंटीबायोटिक्स-पर बनाया है, जो भारत के बड़े-बड़े ब्रांड्स के लिए कॉस्ट-प्लस कॉन्ट्रैक्ट्स के तहत बनाए जाते हैं. ये मॉडल पूरी तरह वॉल्यूम पर आधारित है: क्लाइंट्स एकम्स को कच्चे माल की लागत के साथ एक निश्चित कन्वर्जन फ़ी देते हैं. जब एक्टिव इंग्रेडिएंट्स (APIs) सस्ते होते हैं, तो एकम्स बचत को वापस दे देती है; जब उनकी क़ीमत बढ़ती है, तो उसे उसका भुगतान मिल जाता है. यह सिस्टम क्षमता के इस्तेमाल की गारंटी देता है, लेकिन मार्जिन को कम और लगभग स्थिर रखता है. इसके अलावा, कंपनी का मुख्य रूप से जेनेरिक प्रोडक्ट्स पर फोकस भी इसकी क़ीमत वसूलने की क्षमता को सीमित करता है, जिससे मार्जिन की एक ऊपरी सीमा तय हो जाती है. दूसरी ओर, डिवीज़ लैबोरेट्रीज़ ख़ास तरह के, पेटेंट सुरक्षित APIs बेचती है और इसका प्राइसिंग मॉडल इसे हर दक्षता लाभ को अपने पास रखने की अनुमति देता है. एकम्स के मामले में ऐसा नहीं है.
कौन है जिम्मेदार
केवल 8 प्रतिशत रेवेन्यू शेयर के बावजूद, एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (API) और ट्रेड जेनेरिक्स सेगमेंट मार्जिन को सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुंचा रहे हैं (नीचे दी गई टेबल देखें).
API सेगमेंट अब एक पूर्ण विकसित यूनिट में बदल गया है, जिसके तहत कंपनी पहले अपनी अतिरिक्त क्षमता को खुले बाज़ार में बेचती थी. हालांकि, क़ीमतों के दबाव के कारण इसका मार्जिन कम है. ग्रुप की छोटी सेफेलोस्पोरिन API आर्म पिछले दो सालों से कैश में सेंध लगा रही है, क्योंकि चीनी क्षमता के बाज़ार में आने से वैश्विक स्तर पर क़ीमतें धराशायी हो गई हैं.
भारत के ग्रामीण इलाकों में बिकने वाले सस्ते ट्रेड जेनेरिक्स को क्षेत्रीय कंपनियों की तरफ से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और आक्रामक छूट पर रोक के कारण मार्जिन और नीचे चला गई है.
तीसरा हिस्सा-घरेलू और अंतरराष्ट्रीय ब्रांडेड फॉर्मुलेशंस- मध्यम से ऊंचा मार्जिन कमाते हैं, लेकिन इन हाई-वैल्यू लेबल्स की अभी भी कुल बिक्री में केवल 14 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जो पूरे ग्रुप का मार्जिन बढ़ाने के लिहाज़ से काफ़ी नहीं है.
एल्कम्स के मार्जिन पर क्यों है दबाव
सेगमेंट (FY25) | रेवेन्यू में हिस्सा | EBITDA % |
---|---|---|
कॉस्ट-प्लस CDMO | 78 % | 14 % |
APIs | 5 % | -20 % |
ट्रेड जेनरिक | 3 % | -24 % |
घरेलू ब्रांडेड फॉर्मूलेशन | 11% | 17.70% |
अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडेड फॉर्मूलेशन | 3% | 19.3 % |
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मैनेजमेंट की सुधार की योजना
चेयरमैन संजीव जैन और सीईओ सौरभ सेठी जानते हैं कि ये आंकड़े अच्छे नहीं दिखते, और उनके “मार्जिन 15” प्लान में तीन प्रमुख क्षेत्र हैं:
- API में नुक़सान रोकें
कंपनी API वॉल्यूम बढ़ाने की योजना बना रही है ताकि स्केल बढ़ने से लागत का दबाव कम हो. मैनेजमेंट को उम्मीद है कि इन कोशिशों से API का नुक़सान अगले साल आधा हो जाएगा और फ़ाइनेंशियल ईयर 27 में पूरी तरह खत्म हो जाएगा. - नए स्टेराइल ब्लॉक्स को रफ्तार दें (हाई-मार्जिन कॉम्प्लेक्स डोज फॉर्मुलेशंस)
हरिद्वार में एक नई इंजेक्टेबल लाइन और कोटद्वार में एक कार्बापेनेम प्लांट 10 प्रतिशत से कम क्षमता पर चल रहे हैं. स्टेराइल्स आमतौर पर 18-20 प्रतिशत मार्जिन देते हैं. लक्ष्य फ़ाइनेंशियल ईयर27 तक 60 प्रतिशत उपयोग का है. - ट्रेड जेनेरिक्स को कम करें या इससे बाहर निकलें
यहां रेवेन्यू पहले ही साल-दर-साल 35 प्रतिशत गिर चुका है. पीछे हटने से ₹20 करोड़ के नुक़सान को बचाने की उम्मीद है.
क्या गणित सही बैठता है?
अगर API सेगमेंट ब्रेकईवन तक पहुंच जाता है और ट्रेड जेनेरिक्स को बंद कर दिया जाता है, तो कंपनी 13.5 प्रतिशत CDMO मार्जिन को कंसोलिडेटेड स्तर पर बनाए रख सकती है (दो नुक़सान वाले सेगमेंट्स से मार्जिन हानि की गौर मौजूदगी में). अगर कंपनी की गाइडेड क्षमता के 60 प्रतिशत इस्तेमाल पर ₹4,500 करोड़ का रेवेन्यू मान लिया जाए, तो ये FY25 के ₹343 करोड़ के मुकाबले ₹400 करोड़ का टैक्स के बाद मुनाफ़ा कमा सकता है. ये दो साल में 7 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर के बराबर है.
वैल्यूएशन का क्या?
पहली समस्या ये है कि एकम्स अभी उस स्थिति में नहीं है. उपरोक्त अनुमानों को साकार करने और मार्जिन बढ़ाने के लिए बहुत कुछ सही होना चाहिए और आगे का रास्ता अनिश्चितताओं से भरा है. ख़ासकर स्टेराइल बिजनेस में, रेगुलेटर से जुड़ी मंजूरी अनिश्चित है, जहां छोटी सी चूक भी बड़ा झटका दे सकती है. इसके अलावा, API की क़ीमतें ग्लोबल सप्लाई चेन, ख़ासकर चीन की अस्थिरता से ख़ासी प्रभावित होती हैं, जिससे ब्रेकईवन का लक्ष्य टल सकता है.
यहां तक कि एक आशावादी परिदृश्य में, जहां मैनेजमेंट अपनी योजनाओं में सफल हो जाता है-लक्षित ऑपरेटिंग लिवरेज साकार हो जाता है और मार्जिन सुधरता है-मुनाफ़े में संभावित सालाना ग्रोथ फिर भी केवल 7 प्रतिशत है, जो 27 गुना के कम मल्टीपल को जायज ठहराने में नाकाम रहती है.
डिस्क्लेमर: ये स्टॉक रेकमंडेशन नहीं है. निवेशकों को निवेश से जुड़ा कोई भी फ़ैसला लेने से पहले अपनी खुद की रिसर्च करनी चाहिए.
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