स्टॉक का आईडिया

जिस दिन इन्फ़ोसिस को बेच देना चाहिए था: वैल्यूएशन से जुड़ा एक मुश्किल सबक़

बड़ी कंपनियों के स्टॉक्स में फंसने की ग़लती से बचने का सही तरीक़ा

स्टॉक कब बेचना चाहिए: इन्फोसिस का सबकAI-generated image

मार्च 1999 में, इन्फ़ोसिस NASDAQ पर सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गई थी. इसके बाद जो हुआ वो किसी चमत्कार से कम नहीं था - डॉट-कॉम के सुर्खियों में रहने के दौरान, इन्फ़ोसिस के शेयर की क़ीमत एक साल के भीतर लगभग ₹24 से बढ़कर ₹217 हो गई, जो लगभग 10 गुना रिटर्न था.

लेकिन मार्च 2000 तक, इसकी वैल्यूएशन काल्पनिक स्तरों पर पहुंच गई थी और उस समय शेयर 500 से ज़्यादा के P/E रेशियो पर ट्रेड कर रहा था.

इसका नतीजा हुआ कि अगले नौ वर्षों में शेयर की क़ीमत स्थिर बनी रही, हालांकि, प्रॉफ़िट 20 गुना से ज़्यादा बढ़कर फ़ाइनेंशियल ईयर 2000 के ₹286 करोड़ से फ़ाइनेंशियल ईयर 2009 तक ₹5,988 करोड़ के स्तर पर पहुंच गया.

जो निवेशक इस पीक पर टिके रहे, उन्होंने इसके रिकवर होने के लिए लगभग एक दशक तक इंतजार किया. असल में, उस दौर में इन्फ़ोसिस विफल नहीं हुई थी, बल्कि इसलिए कि शेयर बुनियादी बातों से बहुत आगे निकल गया था।

वो एक ऐसा क्षण था जब इन्फोसिस, एक बेहतरीन कंपनी होने के बावजूद, में बिकवाली का हल्ला हो रहा था.

सिर्फ इन्फ़ोसिस ही नहीं: HUL और रिलायंस के साथ भी ऐसा हुआ
इंफ़ोसिस का मामला दुर्लभ नहीं है. कई अन्य बड़ी कंपनियों का रिटर्न कई साल तक फ्लैट रहा, जब निवेशकों ने वैल्यूएशन को नज़रअंदाज़ किया.

  • हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL): 2000 से 2011 तक, लगातार प्रॉफ़िट बढ़ने के बावजूद, इसके शेयर में मुश्किल से ही कोई बदलाव हुआ. निवेशकों को एक दशक से ज़्यादा समय तक कोई कैपिटल गेन नहीं हुआ.
  • रिलायंस इंडस्ट्रीज़: 2008 के पीक पर ख़रीदने वाले निवेशकों को रिटर्न कमाने के लिए 2017 तक इंतजार किया, हालांकि, इस दौरान प्रॉफ़िट दोगुना हो गया था. ये ठहराव लगभग नौ साल का था.

ये क्वालिटी बिज़नस हैं. लेकिन जब सबसे बढ़िया स्टॉक को बढ़ी हुई क़ीमतों पर ख़रीदा या रखा जाता है, तो वे भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते.

वैल्यूएशन और टाइमिंग क्यों मायने रखती है

बहुत ज़्यादा भुगतान करना निवेश संबंधी सबसे आम ग़लती है.

भले ही कंपनी सब कुछ सही कर रही हो, लेकिन अगर बाज़ार ने बहुत ज़्यादा ग्रोथ के अनुमान पर क़ीमत लगाई है, तो स्टॉक बेकार हो सकता है.

बेंजामिन ग्राहम ने अच्छी बात की है: "आप जो क़ीमत चुकाते हैं, वो आपका रिटर्न तय करती है." अगर आप ज़्यादा भुगतान करते हैं, तो आप कमज़ो प्रदर्शन करते हैं. ये सरल सी बात है.

इंफ़ोसिस की क़ीमत इस तरह लगाई गई थी मानो ये 2000 में रातों-रात दुनिया पर छा जाएगी. जब वास्तविकता सामने आई, तो क़ीमत को बुनियादी बातों के बराबर आने में सालों लग गए.

इसलिए, एक बढ़िया बिज़नस को बढ़िया स्टॉक मानकर भ्रमित न हों, ख़ासकर जब क़ीमत से वैल्यू अलग हो.

चार स्पष्ट संकेत कि बेचने का समय आ गया है

जब आप किसी सिस्टम को फ़ॉलो करते हैं तो बेचना अनुमान लगाने जैसा नहीं होता. यहां चार स्पष्ट संकेत दिए गए हैं जिससे आपके निर्णय को दिशा मिल सकती है:

1. वैल्यूएशन बहुत ज़्यादा है या लक्ष्य पूरा हो गया है
अगर किसी शेयर की क़ीमत उसके आंतरिक मूल्य से कहीं ज़्यादा हो गई है या आपके लक्ष्य से ज़्यादा हो गई है, तो प्रॉफ़िट बुक करने पर विचार करें. 500 से ज़्यादा के P/E पर इंफ़ोसिस की स्थिति बिल्कुल ऐसी ही थी.

2. फंडामेंटल ख़राब हो गए हैं
क्या कंपनी ने अपनी ग्रोथ गंवा दी है, प्रबंधन संबंधी समस्याएं देख रही है या क़र्ज़ में डूब गई है? अगर बिज़नस के हालात कमज़ोर हो गए हैं, तो आगे बढ़ने का समय आ गया है.

3. आपको रिबैलेंस या रिडीम की ज़रूरत है
अगर कोई स्टॉक आपके पोर्टफ़ोलियो पर हावी है, तो उसे कम करें. या अगर आप घर ख़रीदने, शिक्षा के लिए पैसे जुटाना जैसे किसी फ़ाइनेंशियल गोल्स के करीब हैं तो पैसे का इस्तेमाल करें. निवेश इसी के लिए है.

4. बेहतर अवसर सामने आते हैं
कभी-कभी कोई दूसरा स्टॉक बेहतर रिस्क-रिवार्ड देता है. अपनी पूंजी को निकालें और जहां संभावना ज़्यादा हो, वहां फिर से निवेश करें.

भावनाओं के वश में आकर निवेश से बाहर न निकलें
कई निवेशक FOMO या कंपनी के प्रति वफ़ादारी के कारण निवेश में बने रहते हैं.

लेकिन उम्मीद कोई स्ट्रैटजी नहीं है. "बस थोड़ी और बढ़त" का इंतजार करने से फ़ायदा पछतावे में बदल सकता है.

इन्फ़ोसिस, HUL, रिलायंस से जुड़ी ये कहानियां सिर्फ़ बाज़ार की सामान्य जानकारी नहीं हैं. इससे पता चलता है कि लंबे समय के निवेश के लिए तर्कसंगत निवेश की ज़रूरत होती है.

ओवरवैल्यूड यानि महंगे स्टॉक में निवेशित रहने से आपकी पूंजी फ़ंसी रह सकती है और आपको अन्य जगहों पर संभावित कंपाउंडिंग के चलते कई वर्षों का नुकसान हो सकता है.

अनुशासन से भावनाओं को हरा सकते हैं. हमेशा.

वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र कैसे मदद करता है
वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र आपकी ओर से बड़ा काम करता है.

हम न केवल ख़रीदने के लिए स्टॉक रिकमंड करते हैं - हम यह भी करते हैं:

  • फंडामेंटल्स और वैल्यूएशन को लगातार ट्रैक करते हैं
  • निवेश सिद्धांतों का नियमित रूप से आकलन करते हैं.
  • जब कोई स्टॉक ओवरवैल्यूड हो जाता है या कहानी कमज़ोर हो जाती है, तो आपको आगाह करते हैं.
  • उन्हें "बेचें", "होल्ड - महंगा" के रूप में लेबल करते हैं, या ज़रूरत पड़ने पर फिर से रेट करते हैं,

This ensures you're not caught off guard when something changes. You stay ahead, not behind the news.

इससे ये सुनिश्चित होता है कि जब कुछ बदलता है तो आप चौंके नहीं. आप ख़बरों से आगे रहते हैं, पीछे नहीं. ये ऐसा है जैसे कोई रिसर्च पार्टनर फुसफुसा रहा हो, "आगे बढ़ने का समय आ गया है," जबकि बाज़ार अभी भी जश्न मना रहा हो.

निष्कर्ष: बेचना एक स्ट्रैटजी है, घबराना नहीं

बेचने का मतलब हार मान लेना नहीं है. इसका मतलब है समझदारी से काम लेना.

इससे आप अपने फ़ायदे की रक्षा करते हैं, गिरावट से बचते हैं और तेज़ी से बदलते बाज़ार में मज़बूती के साथ बने रहते हैं.

इन्फ़ोसिस ने हमें दिखाया कि बेचने का एक अच्छा फैसला आपको एक दशक तक इंतज़ार करने से बचा सकता है.

और, आपके साथ एक भरोसेमंद रिसर्च टीम होने पर, आप निवेश कर सकते हैं — और आत्मविश्वास के साथ बाहर निकल सकते हैं.

क्या आप समझदारी से बेचने के लिए तैयार हैं?
अच्छा निवेश सिर्फ़ ये नहीं है कि क्या ख़रीदना है. ये इस बारे में भी है कि कब बाहर निकलना है.

वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र से दोनों में मदद लें. जानें कि कब ख़रीदना है, कब होल्ड रखना है या कब बेचना है — वो भी बिना चिंता, इमोशन या भ्रम के.

आज ही स्टॉक एडवाइज़र को सब्सक्राइब करें और अपने पोर्टफ़ोलियो में अनुमान लगाने की ज़रूरत को खत्म करें.

ये भी पढ़ें: 20 साल तक डिविडेंड देने वाले 5 स्टॉक्स जो बाज़ार से बेहतर प्रदर्शन करते हैं

वैल्यू रिसर्च से पूछें aks value research information

कोई सवाल छोटा नहीं होता. पर्सनल फ़ाइनांस, म्यूचुअल फ़ंड्स, या फिर स्टॉक्स पर बेझिझक अपने सवाल पूछिए, और हम आसान भाषा में आपको जवाब देंगे.


टॉप पिक

कौन से म्यूचुअल फ़ंड दे सकते हैं 26% से ज़्यादा रिटर्न?

पढ़ने का समय 4 मिनटAmeya Satyawadi

पीटर लिंच की स्टाइल में चुनें शेयर बाज़ार के 9 छिपे हुए नगीने

पढ़ने का समय 4 मिनटAbhinav Goel

छुपे हुए हीरे: 4 हाई-ग्रोथ स्टॉक्स जो नज़रों से परे रहे हैं

पढ़ने का समय 3 मिनटवैल्यू् रिसर्च टीम

₹5 करोड़ तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?

पढ़ने का समय 4 मिनटआकार रस्तोगी

11 शेयर जो वॉरेन बफ़ेट की कैपिटल इफ़िशिएंसी टेस्ट पर खरे उतरते हैं

पढ़ने का समय 5 मिनटSatyajit Sen

दूसरी कैटेगरी