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ये निवेश की दुनिया के सबसे लुभावने विचारों में से एक है: जब बाज़ार गिरे, तब ख़रीदो, और फिर उसके उछाल का मज़ा लो. यह विचार बहुत सीधा लगता है: जब क़ीमतें गिरती हैं, तब संभावित रिटर्न बढ़ जाता है. लेकिन असल ज़िंदगी का निवेश कभी भी पाठ्यपुस्तक के नियमों का पालन नहीं करता.
‘Buy the dip’ यानी गिरावट में ख़रीदने की बात सुनने में एक आसान जीत जैसा लगता है. लेकिन हक़ीक़त में, इसके लिए चाहिए लोहा जैसा आत्मविश्वास, सटीक टाइमिंग और थोड़ी क़िस्मत भी. क्योंकि गिरावट कभी भी चेतावनी देकर नहीं आती. जो एक अस्थायी झटका लगता है, वो किसी बड़ी और लंबी गिरावट में बदल सकता है.
इस लेख में हम जानेंगे कि गिरावट में ख़रीदना असल में क्या होता है, ये कैसे उल्टा पड़ सकता है और इसे करने का एक बेहतर तरीक़ा क्या है.
गिरावट में ख़रीदना कैसे आपके ख़िलाफ़ जा सकता है
यहां समस्या ये है: बाज़ार कभी ये घोषणा नहीं करता कि वो अब अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है और अब वापस चढ़ेगा. जो 10 प्रतिशत की गिरावट लग रही है, वो 20 प्रतिशत की बड़ी गिरावट में बदल सकती है.
ऐतिहासिक आंकड़े बताते हैं कि बाज़ार के अपने सबसे ऊंचे स्तर से 10 प्रतिशत या ज़्यादा गिरने की एक-में-पांच बार संभावना होती है.
पिछले पांच दशकों में, बीएसई सेंसेक्स 35 बार अपने उच्चतम स्तर से 10 प्रतिशत से ज़्यादा गिरा है. इन 35 घटनाओं में से, 7 बार बाज़ार अगले 12 महीनों में और ज़्यादा गिरा. इससे भी ज़्यादा दुखदाई बात ये है कि बाज़ार को अपने पुराने सबसे ऊंचे स्तर तक वापस आने में एक साल से भी ज़्यादा का समय लग सकता है.
स्पष्ट है, एकमुश्त तरीक़े से गिरावट में ख़रीदारी करना जोखिमों से भरा हुआ है.
बेहतर गिरावट में निवेश का तरीक़ा
यहीं पर 'staggered strategies' (किस्तों में निवेश की रणनीति) काम आती हैं.
बाज़ार की टाइमिंग करने के बजाय, किस्तों में किया गया निवेश आपको समय-समय पर छोटे-छोटे हिस्सों में पैसा निवेश करने की सुविधा देता है.
ये रणनीति आपको तब ज़्यादा यूनिट ख़रीदने देती है जब क़ीमतें कम होती हैं, और कम यूनिट जब क़ीमतें ज़्यादा होती हैं. इससे आपके औसत खरीद मूल्य को कम किया जा सकता है, जिसे ‘rupee cost averaging’ कहा जाता है, और ये बाज़ार की अस्थिरता को संतुलित करने में मदद करता है.
सामान्य रूप से, किस्तों में निवेश के तीन बड़े तरीक़े होते हैं:
- SIPs (Systematic Investment Plans): ये एक ऑटोमेटेड विकल्प है जो म्यूचुअल फ़ंड में किसी निर्धारित तिथि पर निवेश करता है. यह निवेश मासिक, साप्ताहिक या दैनिक भी हो सकता है (हम मासिक विकल्प को प्राथमिकता देते हैं).
- STPs (Systematic Transfer Plans): ये रणनीति कम जोखिम वाले डेट फ़ंड (जैसे लिक्विड या अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन फंड्स) से धीरे-धीरे इक्विटी फ़ंड्स में पैसा ट्रांसफ़र करती है.
- Manual: पूर्व-निर्धारित अंतराल (जैसे मासिक या त्रैमासिक) पर स्वयं निवेश करना.
इस रणनीति का एक और फ़ायदा ये है कि ये निवेश से जुड़ी भावनाओं को अलग कर देती है. निवेशक अक्सर तब घबरा जाते हैं जब बाज़ार और नीचे गिरता है, लेकिन SIP और STP बाज़ार के शोर के बावजूद व्यवस्थित रूप से निवेश करते रहते हैं.
आंकड़े क्या कहते हैं: एकमुश्त बनाम किस्तों में निवेश?
ये समझने के लिए कि कौन-सी रणनीति बेहतर है, हमने सेंसेक्स का लॉन्गटर्म डेटा अनालेसिस किया. हमने तुलना की:
- शिखर से 10 प्रतिशत की गिरावट पर ₹1 लाख का एकमुश्त निवेश, बनाम
- उसी ₹1 लाख को 12 महीनों में (मासिक STP के ज़रिए) धीरे-धीरे निवेश करना.
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हमने पाया कि SIP के ज़रिए किस्तों में किया गया निवेश 32 में से 17 बार एकमुश्त निवेश से बेहतर साबित हुआ.
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आपकी सीख
हां, पेपर पर देखा जाए तो एकमुश्त और किस्तों में निवेश (जैसे SIP या STP) के बीच लॉन्ग-टर्म रिटर्न में अंतर मामूली लग सकता है — लेकिन वास्तविक दुनिया में, ये केवल नंबरों का खेल नहीं है.
- पहली बात: किस्तों में निवेश से आपको बाज़ार को लगातार ट्रैक करने की ज़रूरत नहीं होती. जब तक आपके पास इतना समय, अनुशासन और आत्मविश्वास न हो कि आप 10 प्रतिशत या उससे ज़्यादा की गिरावट का इंतज़ार करें, तब तक यह तरीका बेहतर है.
- दूसरी बात: SIP और STP में रुपए के औसत होने का फ़ायदा मिलता है, जैसा हमने पहले समझाया. यह रणनीति अस्थिरता के प्रभाव को कम करती है और धीरे-धीरे आपकी निवेश की शुरुआत को संतुलित करती है.
- तीसरी बात: किस्तों में निवेश को ऑटोमेट भी किया जा सकता है. एक बार सेट हो जाने के बाद, आपका पैसा एक तय कार्यक्रम पर निवेशित होता रहेगा. न निर्णय की थकान, न भावनात्मक उलझन, न ही मौक़ा चूकने का डर.
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ये लेख पहली बार अप्रैल 30, 2025 को पब्लिश हुआ.