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भारत की इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर की रेस में दो कंपनियों ने सुर्ख़ियां बटोरी हैं, वो हैं- Ola Electric और Ather Energy . दोनों का जन्म एक ही वादे के साथ हुआ था - शहरी मोबिलिटी को एक नया आकार देना. हालांकि, इस गोल को हासिल करने के लिए दोनों ने अलग-अलग रास्ते अपनाए. एक ने सटीकता के बजाय गति को चुना. दूसरी ने धैर्य और बेहतरीन को चुना.
अब, एथर के ₹2,981 करोड़ के IPO के बाज़ार में आने के साथ, निवेशक दूसरे मौके की तलाश में हैं. ओला के IPO के बाद के उतार-चढ़ाव पर ग़ौर करें तो, क्या एथर वो कर सकती है जहां उसकी शानदार प्रतिद्वंद्वी लड़खड़ा गई? एथर ज़्यादा सोची समझी और पूंजी के लिहाज़ से कुशल लग सकती है, लेकिन करीब से जांच करने पर जाने-पहचाने रिस्क नज़र आते हैं, हालांकि, ये बस बेहतर ढंग से छिपे हुए हैं.
एथर क्या सही करती है
चलिए पॉजिटिव पहलुओं से शुरू करते हैं, क्योंकि ये मौजूद हैं. एथर क्वालिटी के मामले में ओला से काफ़ी आगे है. इसकी JD पावर रेटिंग 100 व्हीकल्स में केवल 80 समस्याएं दिखाती है - जो ओला की 90 से कहीं बेहतर है. हालांकि, अभी भी TVS और बजाज जैसी ICE दिग्गजों से पीछे है. इसकी वारंटी कॉस्ट (रेवेन्यू की 2.5 फ़ीसदी) ओला की 5.9 फ़ीसदी से काफ़ी कम है.
EV की क्वालिटी एथर आगे है, लेकिन ICE दिग्गज का अभी भी दबदबा बना हुआ है
एथर प्रति 100 वाहनों में कम खामियों के साथ ओला से आगे है, लेकिन TVS और बजाज जैसी दिग्गज कंपनियों से पीछे है
PP100 | रेवेन्यू के % के रूप में वारंटी कॉस्ट | |
---|---|---|
रॉयल एनफील्ड | 65 | 0.3 |
TVS | 75 | 0.2 |
बजाज ऑटो | 78 | 0.1 |
एथर | 80 | 2.5 |
ओला इलेक्ट्रिक | 90 | 5.9 |
हीरो मोटोकॉर्प | 98 | 0.7 |
PP100: प्रति 100 वाहनों पर समस्याएं |
ऑपरेशन के लिहाज़ से, एथर सीमित तौर पर काम करती है. ये ज़्यादातर कम्पोनेंट्स को आउटसोर्स करती है, भारी पूंजी ख़र्च वाली बैटरी सेल से दूर है और शोरूम की ओनरशिप लेने से बचती है. और, अहम बात ये है कि इसकी EV तकनीक घरेलू है, जो किसी से ख़रीदी नहीं गई है.
अब तक, बहुत प्रभावशाली रही है. लेकिन निवेश का मतलब डिज़ाइन से जुड़े फैसलों को मंजूरी देना नहीं है. ये पैसा कमाने से जुड़ा है.
जहां पहिए डगमगाने लगते हैं
एथर भले ही ज़्यादा व्यवस्थित हो, लेकिन इसके बिज़नस से जुड़े फंडामेंटल्स उतने साफ़ नहीं हैं. फ़ाइनेंशियल ईयर 2019 से, इसने ₹3,400 करोड़ ख़र्च कर दिए हैं और घाटे में चल रही है. दिसंबर 2024 को समाप्त पिछले 12 महीनों में ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट - ₹811 करोड़ (यानी नुक़सान) रहा है. टैक्स के बाद का प्रॉफ़िट - ₹861 करोड़ रहा है.
कंपनी का कहना है कि इसकी कैश बर्न रेट (नकदी ख़र्च करने की दर) ओला (0.6 बनाम 0.7) से बेहतर है, लेकिन ऐसा केवल तभी हुआ जब आप रेवेन्यू शुरू होने वाले वर्ष से गिनना शुरू करते हैं. वर्ष 2019 से पहले के R&D ख़र्चों को सुविधाजनक रूप से बाहर रखा गया है.
बड़ी समस्या क्षमता के इस्तेमाल की है, जो 39 फ़ीसदी पर अटकी हुई है. फिर भी, कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता को दोगुना करने की योजना बना रही है - जब यूटिलाइजेशन (उपयोग) इतना ख़राब है तो ये एक साहसी कदम है.
सब्सिडी को छोड़कर ग्रॉस मार्जिन अभी पॉज़िटिव (12 प्रतिशत) हो गया है. एथर इसका श्रेय बेहतर ऑपरेटिंग लीवरेज और सस्ते मॉडल मिक्स (विशेष रूप से, रिज़्टा) को देती है, लेकिन वास्तविक वॉल्यूम हासिल किए बिना मार्जिन सब्सिडी योजना की तरह ये अस्थायी हो सकता है.
रिज़्टा ने यूनिट रेवेन्यू को किया कम
प्रीमियम ब्रांडिंग के बावजूद, एथर का प्रति यूनिट रेवेन्यू कम हो गया है, जिससे मास-मार्केट सेगमेंट्स पर इसके जोर का पता चलता है
Y22 | FY23 | FY24 | 9M FY25 | |
---|---|---|---|---|
वॉल्यूम | 23,402 | 92,093 | 1,09,577 | 1,07,983 |
प्रति यूनिट रेवेन्यू (₹) | 1,58,192 | 1,55,571 | 1,43,333 | 1,29,001 |
प्रति यूनिट बिक्री पर सामान की कॉस्ट (₹) | 1,64,003 | 1,73,238 | 1,48,918 | 1,21,584 |
सब्सिडी को छोड़कर ग्रॉस मार्जिन (%) | -17 | उपलब्ध नहीं | -6 | 12 |
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ब्रेक-ईवन का छलावा
क्या एथर ऑपरेटिंग प्रॉफ़िटेबिलिटी तक पहुंच सकती है? आंकड़ों की बात करें तो हां. हकीकत में, ये जटिल है.
एथर के लिए ब्रेक-ईवन की राह मुश्किल है
ब्रेक-ईवन के लिए, एथर को 6.5 लाख यूनिट बेचनी होंगी जो मौजूदा वॉल्यूम की लगभग 5 गुनी है. इससे लिए तेज़ और लगातार ग्रोथ की ज़रूरत होगी
ख़र्च | मौजूदा कॉस्ट* | अनुमानित कॉस्ट | मान्यता |
---|---|---|---|
इम्प्लॉई कॉस्ट (करोड़ ₹) | 400 | 700 | बड़े पैमाने के निर्माण के कारण |
अन्य ख़र्च (करोड़ ₹) | 500 | 700 | जैसे-जैसे बड़े पैमाने का निर्माण होगा, वारंटी कॉस्ट और मार्केटिंग ख़र्च में बढ़ोतरी होगी |
डेप्रिसिएशन (करोड़ ₹) | 170 | 300 | असेंबली लाइनों के मौजूदा विस्तार को देखते हुए |
*फ़ाइनेंशियल ईयर 25 के शुरुआती 9 महीनों को एनुलाइज किया गया है |
20 फ़ीसदी के मज़बूत ग्रॉस मार्जिन को मानते हुए, कंपनी को परिचालन के स्तर पर भी बराबरी करने के लिए सालाना 6.5 लाख यूनिट बेचने की ज़रूरत होगी - जो इसके वर्तमान रन रेट से लगभग पांच गुना ज़्यादा है. इसका मतलब है कि उसे पांच वर्षों में 37 फ़ीसदी की सालाना ग्रोथ रेट हासिल करनी होगी, जो पिछले दो वर्षों में हासिल की गई ग्रोथ से दोगुनी है और वो भी EV के लिए प्रोत्साहन से जुड़े दौर में हुआ था.
ये असंभव नहीं है. लेकिन पहले से ही ICE की पुरानी और EV की नई दिग्गज कंपनियों से भरे क्षेत्र में, ये एक कठिन काम है.
ब्रांड बड़े पैमाने पर बाज़ार में उतरेगा- लेकिन क्या ये टिक पाएगा?
एथर की हालिया बिक्री में ज़्यादातर इज़ाफ़ा कम क़ीमत और बड़े पैमाने पर बिक्री वाली पेशकश रिज़्टा से हुआ है. हालांकि अब रिज़्टा की बिक्री में 50 फ़ीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन इसकी कामयाबी ने ब्रांड के लिए एक पहेली खड़ी कर दी है.
टेक सेवी शहरी कंज्यूमर्स के बीच एथर की अपील हमेशा सबसे ज़्यादा रही है. लेकिन बड़े पैमाने पर बाज़ार में अलग-अलग नियम लागू होते हैं, जिनमें क़ीमत, पहुंच और भरोसा आदि शामिल हैं. क्या पटना या इंदौर के ग्राहक होंडा की एक्टिवा के बजाय किसी नए उत्पाद को चुनेंगे?
इसके साथ भौगोलिक चुनौती भी जुड़ी हुई हैं. एथर की बिक्री दक्षिण भारत पर केंद्रित है. राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने का मतलब है बुनियादी ढांचा, मार्केटिंग और बिक्री के बाद की व्यवस्था बनाना, जिसके लिए पूंजी और समय की ज़रूरत होती है.
IPO से मिले पैसे का इस्तेमाल कैसे होगा?
₹2,626 करोड़ के नए इश्यू में से एथर की योजना अगले तीन वर्षों में पूंजीगत ख़र्च पर ₹927 करोड़, R&D पर ₹750 करोड़ और मार्केटिंग पर ₹300 करोड़ ख़र्च करने की है.
क्या IPO फंड काफ़ी लंबे समय तक काम आ सकता है?
राइवल कंपनियों की तुलना में मामूली बजट के साथ, एथर की विस्तार महत्वाकांक्षाओं को संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ सकता है
एलोकेशन | IPO की कुल प्राप्तियां | FY26 | FY27 | FY28 |
---|---|---|---|---|
कैपेक्स | 927 | 706 | 221 | - |
R&D | 750 | 270 | 265 | 215 |
मार्केटिंग | 300 | 150 | 150 | - |
स्रोत: IPO प्रॉस्पेक्टस |
लेकिन ये शायद काफ़ी नहीं होगा. ₹150 करोड़ का सालाना मार्केटिंग बजट ऐसे बाज़ार में मामूली लगता है, जहां मौजूदा कंपनियां सालाना ₹1,000 करोड़ से ज़्यादा ख़र्च करती हैं, जबकि स्थापित ब्रांड और नेटवर्क पहले से ही मौजूद हैं.
इसी तरह, R&D रन रेट ₹300 करोड़ से ऊपर चल रहा है. ऐसे सेगमेंट में इसके और बढ़ने की संभावना है, जहां डिजाइन, बैटरी केमिस्ट्री और सॉफ्टवेयर स्मार्टनेस के मामले में अलग पहचान बनेगी.
एथर को शायद एक और फ़ंडिंग राउंड की ज़रूरत हो. और जब ये आएगा, तो इसके कमज़ोर पड़ने की उम्मीद कर सकते हैं.
सुरक्षा घेरा (moat) नदारद
इसकी चमक हटा दें तो एक और बुनियादी सवाल उभरता है: एथर के पास क्या सुरक्षा घेरा मौजूद है?
इसकी तकनीक भरोसेमंद है, लेकिन इसे दोहराया जा सकता है. इसका कम पूंजी वाला मॉडल बेहतर है, लेकिन इसमें बढ़त की की कमी है. इसका प्रीमियम ब्रांड बड़े पैमाने पर बिज़न बढ़ने पर अपनी बढ़त खो सकता है. और, इसका नेटवर्क राष्ट्रीय नहीं, बल्कि क्षेत्रीय है.
कुल मिलाकर, एथर के पास कोई व्यापक या टिकाऊ सुरक्षा घेरा नहीं है. अभी तक तो नहीं है. ऐसे क्षेत्र में जहां प्रतिद्वंद्वी आक्रामक रूप से निवेश कर रहे हैं और विदेशी ब्रांड बड़े पैमाने पर मौजूद हैं, जो एक रणनीतिक कमज़ोरी है.
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वैल्यूएशन: भरोसे की एक महंगी छलांग
प्राइस बैंड (₹321) के ऊपरी छोर पर, एथर ज़ीरो प्रॉफ़िट और 4.4x के प्राइस-टू-बुक रेशियो पर लगभग ₹12,000 करोड़ के मार्केट कैपिटलाइजेशन के साथ लिस्ट होगी. P/E कोई नहीं है, क्योंकि उसकी अर्निंग्स कोई नहीं है.
कंपनी को उस वैल्यूएशन को सही ठहराने के लिए कम से कम ₹400 करोड़ का सालाना ऑपरेटिंग प्रॉफ़िट कमाने की ज़रूरत होगी और वो भी 30x के भारी भरकम मल्टीपल पर. ये निकट अवधि में काफ़ी ज़्यादा है, ख़ासकर जब नुकसान ज़्यादा है और मार्जिन पर ग़ौर नहीं किया गया है.
निवेशकों से क्षमता के लिए भुगतान करने के लिए कहा जा रहा है, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि क्षमता प्रदर्शन में बदल जाएगी.
आखिरी बात: ओला से ज़्यादा स्मार्ट, लेकिन निवेश के लायक नहीं
कुल मिलाकर, ओला इलेक्ट्रिक की तुलना में एथर ज़्यादा मैच्योर दिखती है. इसे इसकी ग्रोथ, क्वालिटी कंट्रोल में बेहतर और कैपिटल एलोकेशन में ज़्यादा बेहतर माना जाता है. लेकिन ये निवेश के लिए तैयार होने जैसी नहीं है.
मार्जिन कम बने हुए हैं. घाटा लगातार बना हुआ है. कंपनी ब्रेक-ईवन से काफ़ी दूर है. साथ ही, भौगोलिक रूप से और परिचालन के लिहाज़ से बड़े पैमाने पर पहुंचने का रास्ता अनिश्चितता से भरा हुआ है.
क्लीन EV वाहन की तलाश करने वाले निवेशक एथर को ज़्यादा बेहतर पा सकते हैं. लेकिन सिर्फ़ बेहतर होने से बिलों का भुगतान नहीं होता. ऐसा मुनाफ़े से होता है.
जब तक एथर ये साबित नहीं कर देती कि वो बार-बार कमज़ोर पड़े बिना मुनाफ़े में बढ़ सकती है, तब तक इसके IPO को दूसरे मौके के रूप में नहीं, बल्कि सतर्कता के साथ ‘वेट एंड वाच’ के रूप में देखा जाना चाहिए.
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एथर एनर्जी जैसी कंपनी के वैल्यूएशन के लिए केवल सुर्ख़ियां ही नहीं बल्कि फंडामेंटल्स, मैनेजमेंट क्वालिटी और वैल्यूएशन का सावधानीपूर्वक एनालिसिस करना ज़रूरी है. वैल्यू रिसर्च स्टॉक एडवाइज़र के साथ, आपको गहरी रिसर्च द्वारा समर्थित एक्सपर्ट रेकमंडेशन मिलती हैं, जिससे आपको क्वालिटी स्टॉक की पहचान करने और महंगी गलतियों से बचने में मदद मिलती है.
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ये लेख पहली बार मई 05, 2025 को पब्लिश हुआ.