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नये सेक्टर, पुरानी ट्रिक

क्यों हॉट' इन्वेस्टमेंट की होड़ में कॉर्पोरेट गवर्नेंस एक टिकाऊ रिटर्न का आधार बना हुआ है

कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मसलों में घिरी कंपनियों से कैसे बचेंAI-generated image

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तीन दशक पहले, जब मैं एक निवेश विश्लेषक के तौर पर शुरुआत कर रहा था, मुझे वॉल स्ट्रीट के एक अनुभवी व्यक्ति से कुछ गंभीर सलाह मिली. वो भारत के कई बड़े उद्योगपतियों को व्यक्तिगत रूप से जानते थे. इक्विटी निवेश की अपनी गहरी समझ के बावजूद, वो भारतीय शेयरों को लंबे समय तक अपने पास रखने के ख़िलाफ़ थे. इसे लेकर उनकी सोच स्पष्ट थी: "अगर आप इन व्यवसायों और उन्हें चलाने वालों को उतना ही जानते हैं जितना मैं जानता हूं, तो आप अपने पास रखने के लिए एक भी ऐसा शेयर कभी नहीं ख़रीदेंगे."

ये शक़्की नज़रिया 1990 के दशक की शुरुआत में भारत के कॉर्पोरेट गवर्नेंस की असलियत ज़ाहिर करता है, जहां प्रमोटर अक्सर शेयरधारकों के पैसों का रुख़ अपनी ओर मोड़ा करते थे. तब से अब तक, रेग्युलेशन की सख़्ती और जानकारियों के ज़्यादा सार्वजनिक होने से स्थिति बदली है. साथ ही अब प्रमोटरों में इसे लेकर समझ भी बढ़ी है कि लगातार पैसे बनाना तेज़ी से पैसे निकालने से कहीं बेहतर नतीजे देता है.

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फिर भी हाल की घटनाए़ं हमें याद दिलाती हैं कि कॉर्पोरेट गवर्नेंस के रिस्क कभी पूरी तरह ग़ायब नहीं होते--केवल बदलते हैं. जेनसोल का मामला इस बात की एक टेक्स्टबुक जैसी मिसाल पेश करता है कि कैसे उभरते हुए सेक्टर, सवालिया निशान वाले तौर-तरीक़ों की उपजाऊ ज़मीन बन सकते हैं. अक्षय ऊर्जा सेक्टर अपनी शानदार ग्रोथ की कहानी और बड़ी पूंजी की वजह से स्थिरता के चमकदार चोले के नीचे, गवर्नेंस की ख़ामियों के पनपने की एकदम सही ज़मीन तैयार करता है. इसी तरह, अब भी लिखी जा रही बायजू की गाथा बताती है कि कैसे सेलेब्रेटी यूनिकॉर्न भी धराशायी हो सकते हैं जब हर क़ीमत पर ग्रोथ पाने की ललक बिज़नस की बुनियादी नैतिकता को धुंधला कर देती हैं.

ये कोई नया पैटर्न नहीं. हर मार्केट साइकल ऐसे सेक्टर पैदा करती है जहां पैसा बड़ी आसानी से बहा करता है और जांच बहुत देर से हुआ करती है. डॉट-कॉम बबल में कंपनियों को कमाई के बजाय लोगों के नज़रिए के आधार पर वैल्युएशन किया गया. 2000 के दशक के इंफ़्रास्ट्रक्चर में उछाल ने ऐसी क्रॉस-होल्डिंग्स कंपनियों के समूह बनाए जिनके कामकाज का लेखाजोखा किसी को पता नहीं था. आज के "गर्मागर्म" सेक्टर-अक्षय ऊर्जा, एडटेक और स्थिरता की कई थीमें-भले ही गवर्नेंस पर ज़्यादा संवेदनशील न हों, लेकिन वे जिस बड़े कैश फ़्लो को अपनी ओर खींचती हैं, वो निश्चित रूप से कोने-काटने के लिए उपजाऊ ज़मीन तैयार करता है.

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इनमें सबसे ख़तरनाक ये है कि वे हमारे निवेश मनोविज्ञान की कमज़ोरियों को उजागर करती हैं. जब कोई सेक्टर फ़ैशनेबल हो जाता है, तो हमारे उत्साह के साथ-साथ ही हमारी आलोचना करने की क्षमताएं भी कम हो जाती हैं. हम सफलता का श्रेय आसान फ़ंडिंग को देने के बजाय शानदार बिज़नस मॉडल को देने लगते हैं, और ग्रोथ की ऐसी कहानियों पर सवाल उठाने से कतराते हैं जो हमारे नज़रिए से मेल खाती हैं.

एक आम निवेशक के लिए ये एक चुनौती भरी दुविधा पेश करता है. गवर्नेंस से जुड़े ख़तरों का पता लगाने के लिए ज़रूरी मौलिक विश्लेषण की समझ, समय और पहुंच की ज़रूरत होती है, और ज़्यादातर रिटेल निवेशकों के पास इन ख़ूबियों की कमी होती है. यहां तक कि कभी-कभी पेशेवर विश्लेषक भी किसी लुभावनी कहानी के मोहपाश में फंस कर चेतावनी के संकेतों को अनदेखा कर देते हैं.

तो इसका समाधान क्या है? अपनी रिसर्च ख़ुद करने वालों के लिए, कॉर्पोरेट गवर्नेंस को किसी दोयम दर्जे के फ़ैक्टर के तौर पर देखने के बजाए एक नींव के पत्थर की अहमियत देनी चाहिए. इसका मतलब है बोर्ड के स्ट्रक्चर पर और उसके आज़ादी से फ़ैसले लेने की क्षमता को जांचना, संबंधित-पक्ष के बीच लेन-देन पर निगाह रखना, आक्रामक क़िस्म की अकाउंटिंग प्रैक्टिस पर सवाल उठाना, और तब तो ख़ासतौर से सावधान रहना, जब मैनेजमेंट असल चिंताओं को "ग़लतफहमी" कह कर ख़ारिज करता हो.

हालांकि, हमें यथार्थवादी रहना होगा-ज़्यादातर आम निवेशकों के पास इस स्तर की मेहनत के लिए ज़रूरी संसाधनों की कमी होती है. यहीं पर अच्छी तरह से मैनेज किए जा रहे म्यूचुअल फ़ंड या व्यवस्थित पेशेवर सलाह बेशक़ीमती हो जाती है. मज़बूत गवर्नेंस स्क्रीनिंग और जवाबदेही की मांग करने के लिए संस्थागत दमखम रखने वाले फ़ंड मैनेजर आपके निवेश को सुरक्षा की एक और परत दे सकते हैं जिसे आम निवेशक अपने दम पर नहीं पा सकते.

तो, जेनसोल, बायजू और इनसे पहले की अनगिनत ऐसी कंपनियों से सीखने वाला सबक़ ये नहीं है कि हमें उभरते सेक्टर या इनोवेटिव कंपनियों से बचना चाहिए. बल्कि, सबक़ ये है कि पारदर्शिता और गवर्नेंस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता--ये नींव है जिस पर स्थायी रिटर्न की इमारत खड़ी होती है. इंडस्ट्री और उनकी कहानियां बदलती हैं, लेकिन ये मौलिक सत्य सदा अटल रहता है: निवेश में, जीवन की तरह, चरित्र मायने रखता है.

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व्यावहारिक इस्तेमाल के लिए, निवेशकों को पूंजी लगाने से पहले एक गवर्नेंस चेकलिस्ट बनानी चाहिए. ऐसे सुराग तलाशने चाहिए जो आपको कैश फ़्लो की क्वालिटी के बारे में बताएं. उन कंपनियों से सावधान रहें जो मज़बूत ग्रोथ का दावा करने के बावजूद अक्सर कैपिटल जुटाती रहती हैं. प्रमुख अधिकारियों और स्वतंत्र निदेशकों की पृष्ठभूमि के बारे में जानें-क्या वे लायक़ लोग हैं या केवल सजावटी नाम हैं? कंपनी के आकार और प्रदर्शन के मुक़ाबले प्रबंधन के लिए दिए जा रहे मोटे पैसों पर नज़र रखें. ऑडिटर की योग्यता में बदलाव या फ़ाइनेंशियल स्टेटमेंट में ऑडिटर के बदलने पर ध्यान दें. सबसे बड़ी बात ये है कि जब प्रबंधन पारदर्शिता दिखाने के बजाय सही सवालों का आक्रामक तरीक़े से जवाब देने लगे, तो उस पर ज़रूर शक करें.

याद रखें कि अच्छी गवर्नेंस का मतलब सिर्फ़ धोखाधड़ी से बचना नहीं है - ये एक शेयरधारक के रूप में प्रबंधन के हितों और आपके हितों में समानता की बात है. अच्छी तरह से चलने वाली कंपनियों में मुनाफ़ा शेयरहोल्डरों की तरफ़ तब आता है जब कंपनी का कैपिटल बढ़ता है, न कि मुनाफ़ा क्रिएटिव अकाउंटिंग या संबंधित-पक्ष के लेनदेन से कंपनी के चंद अंदरूनी लोगों की तरफ़ जाता है.

और जहां 1990 के दशक के हमारे शक्की वॉल स्ट्रीट के दिग्गज को आज का भारतीय बाज़ार ज़्यादा भरोसेमंद लग सकता है, वहीं उनकी कही बात आज भी प्रासंगिक बनी हुई है - जब लंबे समय का निवेश हो, तो आपके पास क्या है ये जानना उतना ही ज़रूरी है जितना उस चीज़ का स्वामित्व होना जो आपके पास है.

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